आदमी मुसाफिर है, आता है, जाता है
आते जाते रस्तें में यादें छोड जाता है
झोंका हवा का, पानी का रेला
मेले में रह जाए जो अकेला
फिर वो अकेला ही रह जाता है
कब छोडता है ये रोग जी को
दिल भूल जाता है जब किसीको
वो भूलकर भी याद आता है
क्या साथ लाए, क्या तोड़ आए
रस्तें में हम क्या क्या छोड़ आए
मंज़िल पे जा के याद आता है
जब डोलती है जीवन की नैय्या
कोई तो बन जाता है खिवय्या
कोई किनारे पे ही डूब जाता